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पृ॒क्षप्र॑यजो द्रविणः सु॒वाचः॑ सुके॒तव॑ उ॒षसो॑ रे॒वदू॑षुः। उ॒तो चि॑दग्ने महि॒ना पृ॑थि॒व्याः कृ॒तं चि॒देनः॒ सं म॒हे द॑शस्य॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pṛkṣaprayajo draviṇaḥ suvācaḥ suketava uṣaso revad ūṣuḥ | uto cid agne mahinā pṛthivyāḥ kṛtaṁ cid enaḥ sam mahe daśasya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पृ॒क्षऽप्र॑यजः। द्र॒वि॒णः॒। सु॒ऽवाचः॑। सु॒ऽके॒तवः॑। उ॒षसः॑। रे॒वत्। ऊ॒षुः॒। उ॒तो इति॑। चि॒त्। अ॒ग्ने॒। म॒हि॒ना। पृ॒थि॒व्याः। कृ॒तम्। चि॒त्। एनः॑। सम्। म॒हे। द॒श॒स्य॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:7» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:2» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वान् ! (द्रविणः) प्रशस्त द्रव्य जिसके विद्यमान ऐसे आप (महिना) महिमा से (महे) बड़े सौभाग्य के लिये (पृक्षप्रयजः) शुभ गुण और कोमल भाव से यज्ञ करनेहारे (उषसः) प्रभातवेला के तुल्य वर्तमान (सुवाचः) सुन्दर सत्य वाणी से युक्त (सुकेतवः) सुन्दर बुद्धिवाले (रेवत्) द्रव्य के समान (ऊषुः) वसें (उतो) और अन्धकार को निवृत्त करते हैं वैसे (पृथिव्याः) भूमि के मध्य में (कृतम्) किया हुआ (एनः) पाप (चित्) शीघ्र आप (सम्, दशस्य) सम्यक् नष्ट करो (चित्) और सुन्दर कर्म को प्राप्त करो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वानो ! तुम लोग प्रभातवेला के तुल्य मनुष्यों के आत्माओं को प्रकाशित कर विज्ञान दे और अधर्माचरण को छुड़ा के सब मनुष्यों को सत्यवादी विद्वान् करो, जिससे पृथिवी पर पापाचरण न बढ़े ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह।

अन्वय:

हे अग्ने द्रविणस्त्वं महिना महे पृक्षप्रयज उषसइव वर्त्तमानाः सुवाचः सुकेतवो रेवदूषुरुतो अन्धकारं निवर्त्तयन्ति तद्वत्पृथिव्याः कृतमेनश्चित् त्वं सन्दशस्य चिदपि शोभनं प्रापय ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पृक्षप्रयजः) ये पृक्षेण शुभगुणैरार्द्रीभावेन प्रयजन्ति ते (द्रविणः) प्रशस्तानि द्रविणानि द्रव्यानि विद्यन्ते यस्य सः (सुवाचः) सुष्ठु सत्या वाग् येषान्ते (सुकेतवः) सुष्ठु केतुः प्रज्ञा येषान्ते (उषसः) प्रभाता इव (रेवत्) द्रव्यवत् (ऊषुः) वसेयुः (उतो) अपि (चित्) (अग्ने) विद्वन् (महिना) महिम्ना (पृथिव्याः) भूमेर्मध्ये (कृतम्) (चित्) (एनः) पापम् (सम्) (महे) महते सौभाग्याय (दशस्य) क्षयं गमय ॥१०॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो यूयं प्रभातवेलावन्मनुष्यात्मनः प्रकाश्य विज्ञानं दत्वा पापाचरणं त्याजयित्वा सर्वान्मनुष्यान् सत्यवादिनो विदुषः कुरुत येन पृथिव्यां पापाचरणं न वर्धेत ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो! तुम्ही प्रभात वेळेप्रमाणे माणसांच्या आत्म्यांना प्रकाशित करून विज्ञान द्या व अधर्माचरणापासून पृथक करून सर्व माणसांना सत्यवादी विद्वान करा, ज्यामुळे पृथ्वीवर पापाचरण वाढता कामा नये. ॥ १० ॥